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29 May 2017 · 1 min read

“ईर्ष्या” (मनोद्गगार)

“ईर्ष्या”
आज शून्य को तकती
प्यासी नज़रें
कुछ तलाश रही हैं……
किसे मालूम था—
तप्त रेत में जिन अल्फ़ाज़ों को
उकेरती मेरी तूलिका
अरमानों के रंग भर रही है
उन्हें समंदर की ईर्ष्यालु लहर
बहा ले जाएगी।
डॉ.रजनी अग्रवाल
“वाग्देवी रत्ना”

Language: Hindi
1 Like · 355 Views
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