ईरादा
साहिल पर रुककर तूफान का नज़ारा कौन करता है,
हम बेफ़िक्र है, भरोसा टूटने का गम नही,
हार कर सब कुछ फिर से ‘देने’ का ईरादा कौन करता है ।
अब सब्र का इम्तिहाँ है,
मरने तक तो जान है,
होके मगरूर वक्त से पन्जा लड़ाने का ईरादा कौन करता है ।
एक अजब सा आलम है,
अब्र तक फैला सुकून है ,
सीख ली जादुगरी जीने की जिसने,
होके बेपरवाह ,मरने का ईरादा कौन करता है ।।