ईमारत
जर्जर थी ईमारत वोह नींव से ही ,
ढहनी ही थी ,आखिर ढह ही गई ।
दीमक बनकर खा जाए जिसे अपने ,
उस वृक्ष की गति भला और क्या होगी ?
जर्जर थी ईमारत वोह नींव से ही ,
ढहनी ही थी ,आखिर ढह ही गई ।
दीमक बनकर खा जाए जिसे अपने ,
उस वृक्ष की गति भला और क्या होगी ?