Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
8 Jun 2023 · 3 min read

ईमानदारी से १०० के आगे सिर्फ़ तीन जीरो ही लगा पाया.

मैं इंटर करने के बाद आगे पढ़ाई के लिए सोच रहा था, मेरा मन इंजीनियरिंग करने का था, १२ वीं में विषय भी मेरे पास इंजीनियरिंग वाले ही थे. जबकि मेरे पिता जी डाक्टर थे, मैं हमेशा कई विकल्प लेकर चलता था. यांत्रिक इंजीनियर बन गया, २७ साल का अनुभव, लेकिन पुस्तकें लिख रहा हूँ ( आनंद आ रहा हैं). जब मैंने १२ वीं कर ली, एक दिन मेरे पिता जी ने मुझे बुलाया और १०० रुपये देकर कहा इनके आगे सिर्फ़ तुमको जीरो लगानी हैं लेकिन एक शर्त हैं ईमानदारी से …. मैंने १०० रुपये लिये अपनी जेब में रख लिए और सोचने लगा.कई दिन सोचने के बाद मैं एक दिन रेलवे स्टेशन पर चला गया, कई दिनों तक सर्वे करने के बाद पता लगा, खाने पीने का व्यापार सबसे ठीक हैं, कभी ख़त्म नहीं होगा और वो चीजे जो आसानी से स्टेशन पर नहीं मिलती.कई दिनों तक क्षेत्र के मंदिरों में देखा एक ही चीज वहाँ भी समझ में आई यहाँ पर खाने के समान के साथ साथ पूजा का भी समान हैं. जैसे ही एक दिन मैं मंदिर से बाहर निकला, एक वृद्ध महिला जो मंदिर के दरवाज़े के पास ही बैठी हुई थी, खाने के लिए माँगने लगी, दशा देख कर मेरे से रहा न गया, मैं तुरंत उनके लिए ख़ाना लाया,उनका हाल चाल पूछा, ठंड का महीना था, उनके लिए कपड़ों का इंतज़ाम किया, अब ये रोज़ की आदत सी बन गई , मम्मी से ख़ाना बनवाना रोज़ाना उन वृद्ध महिला को खिलाना, ऐसा कई महीनों तक चला. एक दिन मम्मी ने पूछ ही लिया ये ख़ाना किसके लिये लेकर जाता हैं,मैं बोला अपनी मम्मी से चलो मेरे साथ मिलवाता हूँ.जैसे ही मेरी मम्मी ने ख़ाना उनको दिया वो वृद्ध महिला फूट-फूट कर रोने लगी, तेरा कितना अच्छा बेटा हैं तेरा भी और मुझ अनजान का भी ख़्याल रखता हैं.एक मैं अभागन हूँ मेरे पति तो बहुत पहले ही चले गये थे और मेरा एक बेटा हैं जिसने मेरे से नाता तोड़ लिया, मेरा भी बहुत मन करता हैं मैं भी अपने बेटे बहूं पोते पोती से मिलूँ पर कैसे मुझे पता ही नहीं हैं वो कहाँ रहते हैं. मैं उन वृद्ध महिला से बोला लो ये लो १०० रुपयें अपने पास रखों, और चिंता मत करना हम हैं सब तुम्हारे साथ,मैंने आपके रहने का भी इंतज़ाम कर दिया हैं पास ही धर्मशाला हैं उसमें रहा करो. कभी मैं कभी मम्मी उनसे मिलने जाने लगे .एक दिन जैसे ही मैं ख़ाना देकर वापिस जाने लगा मेरा हाथ पकड़ कर बोली बेटा यें लें अपने १०० रुपयें और यह एक गठरी हैं और हाँ इस गठरी को तब खोलना जब मैं इस दुनियाँ में न रहूँ.मम्मी भी ये सब सुन रही थी बहुत मना किया मानी नहीं आख़िर हमें अपने साथ लानी पड़ी,अगले दिन जैसे ही मैं घर से ख़ाना देने के लिए निकला पता लगा वो वृद्ध महिला नहीं रही. बड़ा ही दुःख हुआ मैं, मम्मी व पिता जी तुरंत वहाँ पहुँचे, सब कुछ ख़त्म था. सब कुछ करने के बाद अब समय आ गया की उस गठरी को खोला जायें, जैसे ही खोला हम सब एक दूसरे को देखते ही रह गये,एक स्टील के बर्तन में दो सोने के हार व हीरे का कुछ समान आदि-आदि और वो १०० रुपयें जो मैंने उनको दिये थे. हमने वो सब अपने पास नहीं रखा एक दिन मंदिर में जाकर सब कुछ बताते हुए मंदिर ट्रस्ट को दे दिया, मंदिर ट्रस्ट ने भी बहुत सुंदर काम किया, उन पैसों से उस वृद्ध महिला की मूर्ति बनवाकर वहाँ स्थापित करवा थी जहां वो मंदिर के बाहर बैठती थी. बहुत सुंदर काम किया मन प्रसन्न हुआँ.मैं इंजीनियरिग करने चला गया…ईमानदारी से १०० के आगे सिर्फ़ तीन ज़ीरो ही लगा पाया …

101 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
पल भर फासला है
पल भर फासला है
Ansh
Dr Arun Kumar shastri
Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
"अकेडमी वाला इश्क़"
Lohit Tamta
इंसानियत
इंसानियत
Sunil Maheshwari
तेरा एहसास
तेरा एहसास
Dr fauzia Naseem shad
हाल ऐसा की खुद पे तरस आता है
हाल ऐसा की खुद पे तरस आता है
Kumar lalit
भूख
भूख
RAKESH RAKESH
हमेशा एक स्त्री उम्र से नहीं
हमेशा एक स्त्री उम्र से नहीं
शेखर सिंह
लगी राम धुन हिया को
लगी राम धुन हिया को
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
"आँखों की नमी"
Dr. Kishan tandon kranti
बेवफा
बेवफा
Neeraj Agarwal
असली चमचा जानिए, हाँ जी में उस्ताद ( हास्य कुंडलिया )
असली चमचा जानिए, हाँ जी में उस्ताद ( हास्य कुंडलिया )
Ravi Prakash
जिसका समय पहलवान...
जिसका समय पहलवान...
Priya princess panwar
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Mahendra Narayan
गीत..
गीत..
Dr. Rajendra Singh 'Rahi'
सत्य खोज लिया है जब
सत्य खोज लिया है जब
Buddha Prakash
वापस आना वीर
वापस आना वीर
लक्ष्मी सिंह
माया का रोग (व्यंग्य)
माया का रोग (व्यंग्य)
नवीन जोशी 'नवल'
मैं उस बस्ती में ठहरी हूँ जहाँ पर..
मैं उस बस्ती में ठहरी हूँ जहाँ पर..
Shweta Soni
कौन जात हो भाई / BACHCHA LAL ’UNMESH’
कौन जात हो भाई / BACHCHA LAL ’UNMESH’
Dr MusafiR BaithA
#क़तआ
#क़तआ
*प्रणय प्रभात*
या खुदा तेरा ही करम रहे।
या खुदा तेरा ही करम रहे।
सत्य कुमार प्रेमी
प्यासा पानी जानता,.
प्यासा पानी जानता,.
Vijay kumar Pandey
स्वयं का न उपहास करो तुम , स्वाभिमान की राह वरो तुम
स्वयं का न उपहास करो तुम , स्वाभिमान की राह वरो तुम
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
Speak with your work not with your words
Speak with your work not with your words
Nupur Pathak
संकल्प
संकल्प
Shyam Sundar Subramanian
कब मेरे मालिक आएंगे!
कब मेरे मालिक आएंगे!
Kuldeep mishra (KD)
याद आते हैं
याद आते हैं
Chunnu Lal Gupta
समय की कविता
समय की कविता
Vansh Agarwal
Loading...