ईनाम
#ईनाम #
फोन की घंटी बजने पर जब सविता ने फोन रिसीव किया तो उधर से आवाज़ आई-
“हैलो सविता, मैं नेहा बोल रही हूँ।”
“अरे ! मेम साहब ,आप बोल रही हैं,बोलिए। अब तो लाॅक डाउन खुल गया है, काम पर आ जाऊँ?आपको बहुत परेशानी हो रही होगी?”
“मुझे भी तो बोलने दो।बोलिए, कहकर खुद ही बोलने लग गईं।”
“साॅरी मेमसाहब, आप बोलिए। ये ‘साॅरी’ शब्द सविता ने नेहा के वहाँ काम करते हुए ही सीखा था।
“मैंने तुम्हें काम पर बुलाने के लिए नहीं बल्कि ये बताने के लिए फोन किया है कि तुम्हारे खाते में मई महीने के पैसे भेज दिए हैं। तुम खाते से पैसे निकालकर अपनी घर-गृहस्थी का कुछ इंतजाम कर सकती हो।”
सविता सोचने लगी कि जो मेमसाहब, सामान्य दिनों में महीने की चार-पाँच तारीख तक पैसे देती थीं,वे लाॅकडाउन में एक तारीख को ही खाते में पैसे भेज देती हैं।
सविता ने कहा, “मेमसाहब,ऐसे कब तक चलेगा? फ्री में पैसे लेना अच्छा नहीं लगता।”
“नहीं, ये फ्री का पैसा नहीं है। तुमने पिछले दस सालों में जिस ईमानदारी से मेरे घर में काम किया है, यह उसका ईनाम है।तुम्हारे जैसी काम वाली बाई मुझे कहाँ मिलेगी, कहीं तुम मेरे घर में काम करना बंद न कर दो,इसलिए तुम्हें पैसे दे रही हूँ। और हाँ, अपना तथा अपने बच्चों का ध्यान रखना।बिना काम के बाहर मत जाना।”
मेरी खुद्दारी को किसी प्रकार से ठेस न लगे,इसलिए मेमसाहब ईनाम की बात कर रही हैं, सविता को यह समझने में देर न लगी।,
ठीक है मेमसाहब, “मैं अपना और बच्चों का पूरा ध्यान रखूँगी और उस दिन का इंतज़ार रहेगा जब आप मुझे काम पर वापस आने के लिए फोन करोगी न कि यह बताने के लिए कि खाते में पैसे भेज दिए हैं।”
डाॅ बिपिन पाण्डेय