ईद आ गई है
शीर्षक – ” ईद आ गई है ”
लो फिर से ईद आ गई है ।
खुशियाँ दिल में छा गई है ।।
रमज़ान की इबादत का तोहफ़ा मिला है ।
किसी से नहीं शिकवा न कोई गिला है ।।
मोहब्बतों के शीर से दस्तरख्वान सजाना है ।
भूलाकर रंजिशें सारी गले सबको लगाना है ।।
महक सेवईयों की भा गई है ।
लो फिर से ईद आ गई है ।।
हमारे जिस्म -हमारी रूह को पाक कर दिया है ।
रोज़े की फज़ीलत ने हर बुराई को ख़ाक कर दिया है ।।
ईद के चांद ने रोशन किया है खुशनसीबी का रास्ता ।
नहीं लौटेंगे अब गुनाहों की और सबको ख़ुदा का वास्ता ।।
राह ईमान की दिखा गई है ।
लो फिर से ईद आ गई है ।।
आज ईदी मुहब्बत की बांटना है हमको ।
गमों से खुशियां अब छांटना है हमको ।।
नब्ज़ पर अपनी इख्तियार कर लिया था ।
दामन को अपनी नेकियों से भर लिया था ।।
ज़र्रे ज़र्रे में रौनक छा गई है ।
लो फिर से ईद आ गई है ।।
खुशियां दिल में छा गई है ।।
© डॉ वासिफ क़ाज़ी इंदौर
© काज़ी की कलम
28/3/2 , अहिल्या पल्टन , इक़बाल कॉलोनी
इंदौर, मध्यप्रदेश