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28 Apr 2020 · 1 min read

ईंटों का ढाँचा घर नहीं होता

सही हो वक़्त तो फ़िर कोई डर नहीं होता
अँधेरी रात में अच्छा सफ़र नहीं होता

हजार दूरियां मिलती हैं एक छत के तले
हरेक ईंटों का ढाँचा भी घर नहीं होता

सँवारती हैं किताबें बशर के जीवन को
कि इनके जैसा कोई राहबर नहीं होता

सुलगती धूप में तपती हुई हैं ये राहें
न मिलती छाँव अगर ये शजर नहीं होता

गुज़रती क्या है किसी दिल से पूछिए ‘सागर’
वफ़ाशियार अगर हमसफ़र नहीं होता

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