इस शहर में (ग़ज़ल)
इस शहर में दिल के काले है बहुत
अपने धुन पे गुम मतवाले है बहुत
कैसा ये शहर प्यासा भटके पानी को
हर गली चौराहों में मैखाने है बहुत
आज भी गरीबो के पास घर नहीं
इस शहर में ऊचीं ईंमारते है बहुत
चारो–ओर शोरगुल दौड़ रहा शहर
हर शख्स अन्जान मुश्किले है बहुत
यूँ सोचते बैठे न रह चल दौड़ अब
सोच लें जाना कहाँ रास्ते है बहुत