इस मुकाम पे तुझे क्यूं सूझी बिछड़ने की इस मुकाम पे तुझे क्यूं सूझी बिछड़ने की हम अभी तो पहुंचे हैं बुलन्दी -ए-इश्क की शिव प्रताप लोधी