इस नये दौर में
इस नये दौर में, कैसे अब आए जमाने
आदमी यहां ,आदमी को न पहचाने।
मां बाप,भाई बहन ,मतलब के है रिश्ते
दूर होते जा रहे ,किसी न किसी बहाने।
पाल पोस कर जो मां बाप खड़ा करते
सबसे पहले उनको ही लूटें ये सयाने।
वसीयत पर ही नजरें जमी रहे इनकी
बेटी को सब दे गये ,बहु सुनाए ताने।
बाप, भाई ने भी, शर्म बेचकर खाई
महफ़िल में खुद जाते, बेटी को नचाने।
सुरिंदर कौर