इस धरती पर
** गीतिका **
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सोच समझकर इस धरती पर, कदम बढ़ाने हैं हमको।
अब तक बहुत दिए हमने सब, घाव मिटाने हैं हमको।
औचित्य समझना है सबको, पृथ्वी दिवस मनाने का।
दूर प्रदूषण करना है अब, कष्ट उठाने हैं हमको।
युद्ध आपसी संघर्षों में, रौंद दिया सुन्दर उपवन।
अब तक जो मुरझाए हैं सब, फूल खिलाने हैं हमको।
दोहन बहुत किया धरती का, मां को पीड़ा पँहुचाई।
इसी हेतु अब स्नेह भरे नित, अश्रु बहाने हैं हमको।
सँभल सँभल कर कदम रखेंगे, फूल खिलेंगे राहों में।
सुखमय जीवन यात्रा हित सब, शूल हटाने हैं हमको।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी (हिमाचल प्रदेश)