इस दिवाली …
छज्जे आले छत चौबारे देहरी द्वारे
दीप जगमग जगमग ज्यूँ अंबर तारे
तुम भी लौट घर को जाना इस दिवाली
तिमिर मिटाना घर तुम बिन सूना ख़ाली
पहला दीप जलाना तुलसी के नीचे
अम्मा पानी न पीती थी जो बिन सींचे
जला आना उस आले में भी दीपक एक
बाबूजी की छड़ी खड़ी जहाँ दीवार टेक
आँगन में लगाना झिलमिल दीयों की पाँतें
जहां अम्मा ताई खिलखिल करती थी बातें
दीपों का थाल मंदिर में रख आना ज़रूर
आरती उतार असीसती थी अम्मा भरपूर
बिछाना छत के ऊपर चराग़ों की चादर
ज्यूँ करती अमा को पूनम अम्मा आकर
देहरी के दीये की लौ न होने देना कम
उसकी उजास हर लेगी घर के सारे तम
फुलिया माई गंगू नाईं के भी घर जाना
बैठ सिरहाने करुणा के दीप जलाना
और जलाना एक दीवा रख निज हथेली
हर अंधियारा हो उजियारा मन की हवेली
रेखांकन।रेखा
२६.१०.२४