Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Nov 2021 · 6 min read

इस दिवाली भी

जब भी इन फटती – दरकती दीवारों को देखता हूं तो लगाता है जैसे कंस किले की ये बूढ़ी बीमार दीवारें मिट्टी की उल्टी कर रही हों। इस वीरान किले को कोई आबाद किए है, तो ये पुराने मंदिर और यहाँ – वहां उग आई आक, बबूल और कीकर की बेतरतीब झाड़िया ही, जिन पर बंदरों के झुंड खींचतान मचाए रहते हैं ।
जब जब यहा आता हूं, तब तब रईसुद्दीन याद आता है या ये कहूं कि जब जब रईसुद्दीन याद आता है, तब तब यहाँ चला आता हूं। रईसुद्दीन मेरा यार । दिल का हीरा । नाम भर का नहीं, सचमुच का रईस।
ऐसा ही होता है…….. जिंदगी के हाथ से छूटा हुआ दौर भले कभी न लौटे, लेकिन उसका साया मन की बस्ती में उम्र भर के लिए डेरा डाले रह जाता है। यह किला, लाल पत्थर की यह भगन नक्काशी , कंस का यह पुरातन वैभव……… यहां उसके साथ बैठ बैठकर उम्र के बेहिसाब लम्हे खर्च किए मैने। वो वृंदावन की मथुरा गेट पुलिस चौकी के पास रहता था और मैं वहा से कोई चार छह कदम दूर गौडीय मठ में। इनके बीच जो शाही मस्जिद है, हमारी यारी का फूल उसी के साए में खिला और हमे जोड़ने वाला तार था ये सावरा बंसीवाला……
वो इसी मस्जिद के पीछे की बनी एक छोटी सी कोठरी में बैठा बैठा ठाकुर जी की पोशाकों पर कसीदाकारी किया करता था।जाने कैसा जादू था उसकी पतली लम्बी उंगलियों में। एक से एक नमूने बनाता। एक से एक बूटे काढ़ता । उसकी सुई कपड़े के भीतर डूब डूबकर यूं निकलती जाती जैसे कोई हंस मोती चुन चुनकर लहरों पर रखता जा रहा हो। जब कसीदाकारी कर रहा होता तो लगता की किसी दूसरी ही दुनिया में चला गया है।
एक बार तो पूरी तैयार पोशाक वापस ले गया । बोला, ‘ रात को कन्हैया ख्वाब में आए और बोले ,’रईस ये कैसे बेडौल बूटे काढ़ दिए रे। मुझसे न पहनी जायेगी ये पोशाक …….’ मैने उससे कहा , ‘ क्यों बे हमारे ख्वाब में तो आज तक न आए कन्हैया। तेरे पास कैसे चले आए…..’
वह हस दिया,’ अमां यार , तू नहीं समझेगा …. शिकायते तो बस अजीजो से ही की जाती है…. ‘
चार दिन बाद जब उसने वही पोशाक लौटाई तो लग रहा था जैसे किसी बाग से तोड़कर असली फूल टांक लाया हो। मजाल कि कोई रंग इधर से उधर हुआ हो। बूटो के बीच की दूरी जरा भी गड़बड़ाई हो। कोई ताना आपस मे उलझा हो। कोई मोती ओंधा लगा हो।
शाम को जब फुरसत होती, हम सांवले आसमान और सांवली जमुना की इस जुगलबन्दी को निहारने चले जाते। कभी- कभी दोपहर भर कस किले के इन्ही परकोटो पर टंगे टंगे बिता देते। पतंग के पंछी को कलाबाजियां करने आसमान के पेड़ तक कैसे पहुंचाया जाता है, यह साधना रईस की उस्तादी में यही तो की थी मैंने। अपनी शायस्तर मिजाजी के पर्दे में वह मुहल्ले भर को चकमा देकर अपने इश्क के मंसूबे रंग लिया करता था।
‘ मैं कल पतंग में बांधकर आपकी छ्त के ऊपर खत भेजूंगा, आप पढ लेंगी ना?
कसम बंसीवाले की जिस दिन रईस ने यह बात छुट्टन चच्चा के बेटी आतिया को लिखी, मेरे पाव ऐसे कांपने लगे जैसे अचानक जुड़ी चढ़ गई हो। इश्क उसका, इजहार उसका, पर डर के मारे ये गोसाई मरा जा रहा था।
उस बेखौफ बंदे ने पतंग में बांध बांधकर एक दो नही पूरी सात चिट्ठियां भेजी थी आतिया को । पर उसकी ओर से कोई जवाब न आया। उस बेचारी के अपने डर थे । अपने दायरे थे।
एक दिन जमुना किनारे बैठे बैठे उसने मुझसे कहा, ‘यार गोसाई , मैं कई बार एक सपना बार बार देखता हूं कि मैं कही दूर ऐसी जगह पर हूँ, जहां ऐसी ही लहरे हैं। ऐसे ही दीये । बस घाट पर बड़ी बड़ी लपटे उठ रही है। पता नहीं वो कौन जगह है, पर एक दिन मैं वहां जाऊंगा जरूर………. ‘
किसे मालूम था कि वो दिन इतनी जल्द आ जाएगा। वो कार्तिक का ही महीना था , जब वो वृंदावन की गलिया छोड़का जिंदगी के रास्ते पर आगे चला गया । जाने से पहले दीवाली के लिए खास पोशाक बनाई थी उसने । में उसके मुहल्ले में दिया बारने जाता इससे पहले वो खुद चरागों से भरा थाल लेकर चला गया। आखो में गीले मोती भरे बोला , ‘ गोसाई जब तक मै लौट न आऊ तब तक दीवाली के रोज मेरे हिस्से के चरागों को मुहल्ले की हर चौखट पर तू रौशन करते रहना। ‘ फिर कन्हैया के नैनों पर टकटकी बांध कहने लगा , ‘ देखो मियां , इस बार अपनी तमाम मोहब्बत पिरो लाया हूं इस पीले रेशम में, सो भूलकर भी नुक्स निकालने ख्वाब मे न आ जाना । वैसे भी कौन जाने अब् कब पहना पाऊंगा इन हाथों का कसीदा ।
आतिया को आखिरी चिट्ठी भी उसने जाने से ठीक पहले लिखी थी। लिखा था, ‘ मैं परसो बनारस जा रहा हूं । अच्छा काम मिला है। जानता हू अच्छी रोजी वाले लड़के के लिए चचा ना नही करेंगे । लेकिन रिश्ता तभी भेजूंगा जब बढ़िया सा टीवी खरीद लूंगा। जानता हूं आपको टीवी का कितना शौक है। तथी तो धापो खाला की गालियां खा के भी उनके घर देखने पहुंच जाती है….. ।
उस रोज सांझ के घुप्प अंधेरे मे पहली बार छुट्‌टन चचा की छत से सुरीला जवाब आया, ‘ करि गए थोरे दिन की प्रीति…….. कहं वह प्रीति कहां यह बिछुरनि, कहं मधुबन की रीति………’
जाने कैसी पीर थी उस सुर में मै फफक उठा। वो भी। तीसरे रोज वो चला गया। जाते हुए कहने लगा, ‘ देख गोसाई, आतिया की खैरियत लेते रहना। वैसे मैं भी कौन हमेशा के लिए जा रहा हूँ। जहाज का पंछी जहाज पर ही लौटता है, सो थोड़ा बहुत पैसा बनाकर , नया हुनर सीखकर लौट आऊंगा ।
उसके जाने के बाद बसंत बीता। सावन बीता। हिंडोले, फूलडोल, जन्माष्टमी, दीवाली, अन्नकूट, कंस मेला, एक एक कर पूरा साल सरक गया। इस बीच यहां जो कुछ हुआ, वो सब मै उसे लिख भेजना चाहता था, पर कहां? उसका कोई पता ठिकाना तो था ही नहीं। पूरे डेढ़ साल बाद उसकी चिट्ठी आई, ‘ गोसाई , यहा सब ठीक है। मैं बनारसी साडियो के बेल बूटे डिजाइन करने लगा हूँ। ज्यादातर काम कागज पर ही होता है सो सुई अब कम ही उठाता हूं, पर बड़ी बात ये है कि मैंने टीवी खरीद लिया है। आतिया कैसी है, कैसे भी तू उसे ये खबर जरूर सुना देना और लौटती डाक से तमाम खैरियत लिख भेजना….. हो सका तो साल – छह महीने में लौट आऊंगा और जब आऊंगा तो माशाल्लाह उस बंसीवाले के लिए ऐसी पोशाक बनाऊंगा क़ि वो खुद ख्वाब मे आके दाद दिए बिना न रहे । देख तो वृन्दावन क्या छूटा, इन हाथो से सुई ही छूट गई…… शायद इसीलिए छूट गई है कि जिसके लिए उठती थी, मै उसे ही पीछे छोड़ आया….’
जवाब मे मैंने उसे कोई चिट्ठी न लिखी । कैसे लिखता? जो लिख देता तो जहाज पर लौटने से पहले पंछी के पा टूट न जाते! लेकिन वो हर पंद्रह दिन में चिट्ठी भेजता रहा, कभी लिखता,’ सुन गोसाई, कहीं ये कन्हाई जान रुठ तो नही गए……. बड़े दिन हुए ख्वाब मे आए ही नही……’
वह चिट्ठी दर चिट्ठी आतिया की खैरियत पूछता रहा। मैं भला कब तक न बोलता । चार आखर लिख बता ही दिया कि भाई तेरी आतिया अब वृन्दावन मे नही रहती। वह एक मौलाना की बीवी है। सुना है उसके यहां टीवी तो क्या गाने की भो पाबंदी है……. मै जानता था यही होगा। इस चिट्टी के बाद वह लंबी चुप्पी साध गया । फिर कोई साल भर बाद उसकी चिट्ठी आई, लिखा,’ गोसाई, आतिया कभी तो वृदावन आती होगी। कैसी है? खुश तो है ना? यहों मैंने बहुत पैसा कमा लिया है, फिर भी पता नहीं क्यों कमाए जा रहा हूं। यार तुझसे क्या छिपाऊ…….. इस चिकने फर्श पर चलते हुए मुझे वो खुरदुरी कोठरी याद आती है। गौड़ीय मठ से बहकर आती मृदंग की वो धापें और उसमें घुल घुल जाने वाली मस्जिद की वो अजान याद आती है, आतिया याद आती है। तू याद आता है और वो बंसीवाला भी………. यार मेरे जाने के बाद क्यों अब ये लगने लगा है कि वो रईसी यादों की दराज के सिवा मुझे कही न मिलेगी’
जिस दिन रईस की यह चिट्ठी आई, मैं इसी किले के परकोटों से सटकर खूब रोया । लेकिन आखो का क्या? ये तो अब भी नम है। ऊपर कार्तिक का आसमान है और नीचे कृष्णमयी जमुना। लहरो पर दीयों की पांते टकी है और आसमान मे दूधिया तारे तैर रहे हैं। पूरे बीस साल हो गए उसे गए । दो रोज बाद दिवाली है….. सोच रहा हूं उसके हिस्से के दीये जलाने के बाद झिंझोडकर इन कन्हाई से पूछ ही लू, कि’ क्यों बंसीवाले! जाने वाला हर पंछी जहाज पर क्यो नहीं लौटता? राम लौटे थे, पर तुम नही लौटे……. इतना तो बता ही दो कि मेरा यार लौटेगा या नहीं? जानता हूं उसे बुरा नहीं लगेगा । आखिर रईस कहता था ना कि शिकायते बस अजीजों से ही की जाती हैं…….. I

5 Likes · 6 Comments · 737 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
4090.💐 *पूर्णिका* 💐
4090.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
मुद्दतों बाद फिर खुद से हुई है, मोहब्बत मुझे।
मुद्दतों बाद फिर खुद से हुई है, मोहब्बत मुझे।
Manisha Manjari
अहमियत इसको
अहमियत इसको
Dr fauzia Naseem shad
पेड़ और चिरैया
पेड़ और चिरैया
Saraswati Bajpai
चुनौती  मानकर  मैंने  गले  जिसको  लगाया  है।
चुनौती मानकर मैंने गले जिसको लगाया है।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
*रामपुर रियासत में बिजली के कनेक्शन*
*रामपुर रियासत में बिजली के कनेक्शन*
Ravi Prakash
दीपावली स्वर्णिम रथ है
दीपावली स्वर्णिम रथ है
Neelam Sharma
ढूंढा तुम्हे दरबदर, मांगा मंदिर मस्जिद मजार में
ढूंढा तुम्हे दरबदर, मांगा मंदिर मस्जिद मजार में
Kumar lalit
दूर दूर तक
दूर दूर तक
हिमांशु Kulshrestha
ग़ज़ल : कई क़िस्से अधूरे रह गए अपनी कहानी में
ग़ज़ल : कई क़िस्से अधूरे रह गए अपनी कहानी में
Nakul Kumar
Ang 8K8 ay isa sa mga pinakamahusay na online betting compan
Ang 8K8 ay isa sa mga pinakamahusay na online betting compan
8Kbet Casino Nangunguna sa kagalang galang
वाचाल सरपत
वाचाल सरपत
आनन्द मिश्र
मोहब्बत ने तेरी मुझे है सँवारा
मोहब्बत ने तेरी मुझे है सँवारा
singh kunwar sarvendra vikram
करवाचौथ
करवाचौथ
Dr Archana Gupta
World Hypertension Day
World Hypertension Day
Tushar Jagawat
दोहे-बच्चे
दोहे-बच्चे
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
Loving someone you don’t see everyday is not a bad thing. It
Loving someone you don’t see everyday is not a bad thing. It
पूर्वार्थ
सब कुछ मिट गया
सब कुछ मिट गया
Madhuyanka Raj
गौतम बुद्ध के विचार --
गौतम बुद्ध के विचार --
Seema Garg
ज़रूरत पड़ने पे ही अब मुझे वो याद करते हैं
ज़रूरत पड़ने पे ही अब मुझे वो याद करते हैं
Johnny Ahmed 'क़ैस'
*पानी केरा बुदबुदा*
*पानी केरा बुदबुदा*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
दिलकश
दिलकश
Vandna Thakur
जब भी आपसे कोई व्यक्ति खफ़ा होता है तो इसका मतलब यह नहीं है
जब भी आपसे कोई व्यक्ति खफ़ा होता है तो इसका मतलब यह नहीं है
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
सच्चा मीत
सच्चा मीत
इंजी. संजय श्रीवास्तव
#आध्यात्मिक_कविता
#आध्यात्मिक_कविता
*प्रणय*
!! पर्यावरण !!
!! पर्यावरण !!
Chunnu Lal Gupta
" तय कर लो "
Dr. Kishan tandon kranti
प्यार में बदला नहीं लिया जाता
प्यार में बदला नहीं लिया जाता
Shekhar Chandra Mitra
कोई दुनिया में कहीं भी मेरा, नहीं लगता
कोई दुनिया में कहीं भी मेरा, नहीं लगता
Shweta Soni
सेवा निवृत काल
सेवा निवृत काल
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
Loading...