Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
17 May 2024 · 1 min read

इस तरह कुछ लोग हमसे

ग़ज़ल
इस तरह कुछ लोग हमसे हम-सरी¹ करने लगे
ऐडियाँ अपनी उठा क़द-आवरी² करने लगे

हमने रस्मन उनकी कुछ तारीफ़ क्या कर दी कि वो
ख़ुद-नुमाई³, ख़ुद-सताई⁴, ख़ुद-सरी⁵ करने लगे

यादों की मिट्टी चढ़ा कर फ़िक्र-ओ-फ़न⁶ के चाक पर
कूज़ागर⁷ ले देख, हम कूज़ागरी⁸ करने लगे

शायरी का फ़न⁹ जिन्हें आया नहीं जब उम्र भर
सो सुख़न के नाम पर वो मस्ख़री करने लगे

ज़ेह्न जिनके पास था वो लोग ताजिर¹⁰ बन गये
दिल दिया रब ने हमें हम दिलबरी करने लगे

शहर में हर शख़्स पत्थर हाथ में थामे मिला
और हम उस शहर में शीशागरी¹¹ करने लगे

राहबर¹² करने लगे गुमराह जब हमको ‘अनीस’
मील के पत्थर हमारी रहबरी¹³ करने लगे
– अनीस शाह ‘अनीस ‘
1.प्रतिस्पर्धा 2.क़द बढ़ाना 3.आत्म प्रदर्शन 4.आत्म प्रशंसा 5.उद्दंडता 6.भाव और शिल्प 7.कुम्हार 8.कुम्हार का कार्य 9.कला 10.व्यापारी 11.काँच का व्यापार 12.पथ प्रदर्शक 13.पथ प्रदर्शन

Language: Hindi
1 Like · 93 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
एक दिन जब वो अचानक सामने ही आ गए।
एक दिन जब वो अचानक सामने ही आ गए।
सत्य कुमार प्रेमी
*आता मौसम ठंड का, ज्यों गर्मी के बाद (कुंडलिया)*
*आता मौसम ठंड का, ज्यों गर्मी के बाद (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
नारी का सम्मान 🙏
नारी का सम्मान 🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
Ranjeet Kumar Shukla
Ranjeet Kumar Shukla
हाजीपुर
तुम मेरे हो
तुम मेरे हो
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
आंधी
आंधी
Aman Sinha
मेरी मां।
मेरी मां।
Taj Mohammad
बिल्ली पर कविता -विजय कुमार पाण्डेय
बिल्ली पर कविता -विजय कुमार पाण्डेय
Vijay kumar Pandey
फल की इच्छा रखने फूल नहीं तोड़ा करते.
फल की इच्छा रखने फूल नहीं तोड़ा करते.
Piyush Goel
जिंदगी
जिंदगी
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
काव्य की आत्मा और सात्विक बुद्धि +रमेशराज
काव्य की आत्मा और सात्विक बुद्धि +रमेशराज
कवि रमेशराज
कलम का जादू चल रहा, तो संसार तरक्की कर रहा।
कलम का जादू चल रहा, तो संसार तरक्की कर रहा।
पूर्वार्थ
बीत गया सो बीत गया...
बीत गया सो बीत गया...
डॉ.सीमा अग्रवाल
मेरा भाग्य और कुदरत के रंग...... एक सच
मेरा भाग्य और कुदरत के रंग...... एक सच
Neeraj Agarwal
समाज का डर
समाज का डर
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
झाग की चादर में लिपटी दम तोड़ती यमुना
झाग की चादर में लिपटी दम तोड़ती यमुना
Rakshita Bora
गमों की चादर ओढ़ कर सो रहे थे तन्हां
गमों की चादर ओढ़ कर सो रहे थे तन्हां
Kumar lalit
मेरे पांच रोला छंद
मेरे पांच रोला छंद
Sushila joshi
सोच का अंतर
सोच का अंतर
मधुसूदन गौतम
"रहमत"
Dr. Kishan tandon kranti
4344.*पूर्णिका*
4344.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
कलयुग और सतयुग
कलयुग और सतयुग
Mamta Rani
घाव करे गंभीर
घाव करे गंभीर
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
खुद पर यकीन,
खुद पर यकीन,
manjula chauhan
बड़ी मुद्दतों के बाद
बड़ी मुद्दतों के बाद
VINOD CHAUHAN
#दिवस_विशेष-
#दिवस_विशेष-
*प्रणय*
नज़रों से नज़रें मिली जो
नज़रों से नज़रें मिली जो
Chitra Bisht
यदि कोई देश अपनी किताबों में वो खुशबू पैदा कर दे  जिससे हर य
यदि कोई देश अपनी किताबों में वो खुशबू पैदा कर दे जिससे हर य
RAMESH Kumar
-आगे ही है बढ़ना
-आगे ही है बढ़ना
Seema gupta,Alwar
*जीत का जश्न*
*जीत का जश्न*
Santosh kumar Miri
Loading...