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24 Jul 2024 · 1 min read

इस जीवन में हम कितनों को समझ गए,

इस जीवन में हम कितनों को समझ गए,
कितने तो बन गए और कितने बिगड़ गए,
कई करतूतों की कल्पना तक नहीं थी मुझे
ऐ ज़िंदगी! हम तुझे समझने में ही थक गए।

…. अजित कर्ण ✍️

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