इस जीवन में हम कितनों को समझ गए,
इस जीवन में हम कितनों को समझ गए,
कितने तो बन गए और कितने बिगड़ गए,
कई करतूतों की कल्पना तक नहीं थी मुझे
ऐ ज़िंदगी! हम तुझे समझने में ही थक गए।
…. अजित कर्ण ✍️
इस जीवन में हम कितनों को समझ गए,
कितने तो बन गए और कितने बिगड़ गए,
कई करतूतों की कल्पना तक नहीं थी मुझे
ऐ ज़िंदगी! हम तुझे समझने में ही थक गए।
…. अजित कर्ण ✍️