इस जहाँ से हर कोई इक दिन अकेला जाता है
इस जहाँ से हर कोई इक दिन अकेला जाता है
कब किसी के साथ ये दुनिया का मेला जाता है
चार दिन ही ज़िन्दगी थी, इस जहाँ की भीड़ में
टूट जाए सांस तो, फिर कुछ न खेला जाता है
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इस जहाँ से हर कोई इक दिन अकेला जाता है
कब किसी के साथ ये दुनिया का मेला जाता है
चार दिन ही ज़िन्दगी थी, इस जहाँ की भीड़ में
टूट जाए सांस तो, फिर कुछ न खेला जाता है
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