इस गुमां से दिल महकता है
मेरी नई ग़ज़ल
कमल का फूल तो हरदम ही कीचड़ में निखरता है।
खरा सोना वही जो आग में तप कर निकलता है।
कि दुनिया आब-ओ-गिल ये खबर बंदे को है फिर भी
खिलौना है जो मिट्टी का फ़ना होने से डरता है।
न होता कोई भी जिसका खुदा ही साथ है उसके
यतीमों पर सदा उसकी दुआ का हाथ रहता है।
चिरागों को किया रोशन अमन में तो किया ही क्या
मज़ा तब है दिया बेखौफ तूफानों में जलता है।
लगी है आग ऐसी हो चुका है ख़ाक दिल यारो
हुआ दिल पत्थरों का दर्द भी इसमें न पलता है ।
कभी हम भी थे उनके जो नहीं पहचानते हैं अब
कभी तो जानते थे इस गुमां से दिल महकता है।
कि देखा ग़म जहां का भूल बैठे दर्द हम अपना
दुखों का ये समन्दर है मेरा ग़म बूँद लगता है।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
©