“इस काल मे”
जीवन अब ऐसे काल मे है
जब मृत्यु के बाद भी,
गुणगान नहीं।
कच्चे खोजियों के
अधकचरे अन्वेषण से
जन्म ले रहीं
दिवंगत की अनेक छिछली प्रेम कहानियाँ
निरी अनर्गल और तथ्यहीन।
जिनसे संसार का परिचय
मात्र उनके कौशल पर आधारित है
उनके निजी जीवन की
मनगढ़ंत रंगीन कहानियाँ
मात्र लाइक्स और कमेंट्स के लिए
सोशल पटल पर परोसी जा रही हैं
और अचरज यह कि,
इस मिथक पर
वाहवाही की झड़ी भी लगी है
और सत्य है कि,
अपनी विवशता पर सुबक भी नहीं पा रहा।
जीवन अब ऐसे काल में है
जब विवेक आजीवन अवकाश पर है
और चिंतन आमरण शीतनिद्रा में है।
अब या तो विवेक सक्रिय हो
चिंतन जागृत हो
या फिर तैयार रहें,
एक अविवेकी और छिछले समाज के लिए।