इस कदर भीगा हुआ हूँ
इस कदर भीगा हुआ हूँ
पाँव से सर तक गीला हुआ हूँ
ज़र्द आँखें किसी की देखकर
भीतर तक कहीं पीला हुआ हूँ
उजड़े सारे चमन अपनी हवाओं से
अपनों के हाथों से ही मैं लूटा गया हूँ
ऑंख के बदले आँख के फ़रमान से
कब उजाड़ जाये सब , बहुत सहमा हुआ हूँ
डा. राजीव “सागरी”