इसी खिड़की से प्रतीक्षारत होकर निहारने की तरह ही
इसी खिड़की से प्रतीक्षारत होकर निहारने की तरह ही
मैं प्रतीक्षारत होकर निहारा करता हूं
अपने अंतर्मन की खिड़की से
स्वयं से की हुई स्वयं की उम्मीदों को
अपनों को, सपनों को
और जीवन के कई अन्य नगमों को
जिनके किसी एक कोने में कहीं ना कहीं
मेरा होना पाया जाता है!