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11 Aug 2024 · 1 min read

इसी खिड़की से प्रतीक्षारत होकर निहारने की तरह ही

इसी खिड़की से प्रतीक्षारत होकर निहारने की तरह ही
मैं प्रतीक्षारत होकर निहारा करता हूं
अपने अंतर्मन की खिड़की से
स्वयं से की हुई स्वयं की उम्मीदों को
अपनों को, सपनों को
और जीवन के कई अन्य नगमों को
जिनके किसी एक कोने में कहीं ना कहीं
मेरा होना पाया जाता है!

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