इसीलिए तो कहता हूं, संवेदनाएं जिंदा रखो।
किसी की दुःख,
किसी की तकलीफ का,
तुम्हें एहसास नहीं होता,
तो, तुम जिंदा लाश हो।
संवेदना जब मर जाती है,
तो असंवेदनशील हो जाती है।
इसीलिए तो कहता हूं,
संवेदनाएं जिंदा रखो।
संवेदनाएं जिंदा रखो।
किसी की दुःख . . . . . .
चलो हम अपने राष्ट्र को,
अमन चैन का चमन बनाएं।
मजहबी बंधन तोड़ कर,
भाईचारा जग में फैलाएं।
कोई भी हमको तोड़ न सके,
रिश्तों की मजबूत दीवार बनाएं।
सांप्रदायिकता छू न सके,
प्रगाड़ता की मिसाल बनाएं।
किसी मोड़ पर दुश्मन से भी भेंट हो जायें तो शर्मिन्दा न हो जाए।
इसीलिए तो कहता हूं,
इंसानियत जिंदा रखो।
इंसानियत जिंदा रखो।
किसी की दुःख . . . . . .
नेताम आर सी