#इसलिए मैं इंसान हूँ।#
जरा-सी कामयाबी से लगता मैं ही “भगवान्” हूँ,
गलतियाँ करता हूँ इसलिए मैं इंसान हूँ।
अपनी ही कमियों से मैं परेशान हूँ,
“मैं” मैं करता हूँ इसलिए खुद से ही हैरान हूँ।
गलतियाँ करता हूँ इसलिए मैं इंसान हूँ।।
इबादत नहीं किसी का ना किसी की परवाह है,
मंज़िल का नहीं कुछ पता ना ही कोई चाह है।
उम्र गुजरने के साथ लगता है मैं वही नादान हूँ,
गलतियाँ करता हूँ इसलिए मैं इंसान हूँ।
भीड़ में भी तन्हा रहने की आदत हो गई है,
यही तन्हाई वक़्त के साथ आफत हो गई है।
अपने कृत्यों से बना मैं तो शैतान हूँ,
गलतियाँ करता हूँ इसलिए मैं इंसान हूँ।
दरिया वही है, शाहिल वही है पतवार बदल गया,
वक्त वही है, जहाँ वही है बस इंसा का व्यवहार बदल गया,
जमीं पर पैर टिकते नहीं और चढ़ा मैं आसमान हूँ,
गलतियाँ करता हूँ इसलिए मैं इंसान हूँ।
मुसीबतें आती हैं, जाती हैं इंसान को अड़े रहना चाहिए,
चाहे जमीं सरकती जाये पाँव दबाकर खड़े रहना चाहिये।
सखा मेरा नहीं कोई मैं अवगुणों की खान हूँ,
गलतियाँ करता हूँ इसलिए मैं इंसान हूँ।
बेवजह छूटते तीरों का मैं कमान हूँ,
परवान चढ़ ना पाए जो मैं वो खोखला शान हूँ।
जिंदगी में पल-पल देता मैं इम्तिहान हूँ,
गलतियाँ करता हूँ इसलिए मैं इंसान हूँ।
जरा-सी कामयाबी से लगता मैं ही “भगवान्” हूँ,
गलतियाँ करता हूँ इसलिए मैं इंसान हूँ।
गलतियाँ करता हूँ इसलिए मैं इंसान हूँ।।
✍️हेमंत पराशर✍️