इसमें हमारा जाता भी क्या है
अगर बच जाती है बेगुनाह की जिंदगी,
हमारे किसी झूठ से,
तो बोलना चाहिए हमें वह झूठ,
अगर महक उठता है किसी का चमन,
थोड़ा सा पानी पिला देने से,
तो करना चाहिए हमको यह जल अपर्ण भी,
इसमें हमारा जाता भी क्या है।
मिल जाती है अगर किसी को इज्जत,
हमारे वहाँ से चले जाने पर,
तो नहीं होना चाहिए हमको वहाँ पर,
किसी मुफ़लिस के घर में भी,
होना चाहिए उजाले का चिराग,
तो हम जलाते क्यों नहीं वहाँ चिराग,
इसमें हमारा जाता भी क्या है।
अगर बढ़ जाता है किसी का मान और हौंसला,
हमारे शामिल होने से उसकी सभा में,
तो हमको छोड़कर अपना अहम,
मिलाना चाहिए उससे अपना हाथ,
और इसमें नहीं मानना चाहिए अपना अपमान,
इसमें हमारा जाता भी क्या है।
कभी खाली नहीं होता है सागर,
पानी की एक बून्द उसके द्वारा दान करने से,
और होना भी नहीं चाहिए कंजूस हमको,
अगर मिलती है किसी को ख़ुशी,
हमारे थोड़ा मुस्करा देने से,
इसमें हमारा जाता भी क्या है।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी. आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)