इश्क़ में जूतियों का भी रहता है डर
पीठ पर पति के इतना क्यूँ सामान है
कोई गदहा नहीं यह भी इंसान है
रोड पर झूमना इक हुनर है हुनर
बिन पिये जो चले वह तो नादान है
इश्क़ में जूतियों का भी रहता है डर
ये सफर तो नहीं इतना आसान है
बेचकर बाप का धन लुटाता है जो
अपने घर का वही सच में सुल्तान है
तेल तो ब्रांड का ही लगाते थे तुम
क्यों चमन हो गया इतना वीरान है
दाग लाया हूँ फिर मैं तो बाजार से
कौन आखिर वहाँ बेचता पान है
पाँव ‘आकाश’ बीवी के पड़ने लगा
तबसे घर में न उसके घमासान है
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 30/04/2022