इश्क़ में कम खाता हूँ तो भी ज़ियादा लगता है
आजकल कम खाता हूँ तो भी ज़ियादा लगता है
जब से सुलह हुई है तुमसे,हर ग़म आधा लगता है
मैं तुम्हारी आँखों से पीता हूँ बेहिसाब मय के प्यालें
तुम्हारी आँखों का समन्दर मुझें मैक़दा लगता है
बड़ा खुशनसीब होगा वो आईना,जो तुम देखती हो
लबों को दबा लो दाँतों तले तो प्यासा आईना लगता है
तुम्हें देखने भर से ग़ज़ल हो जाती है छू लूँ तो क्या हो
तुम मुस्करा दो तो दिल में मेरे ख़ुशी का मज़मा लगता है
ना जाने कितनी इबारतें, कितनी शरारतें लिखी हैं
तुम्हारें चेहरें पर,ये तुम्हारा चेहरा मुझें क़ायदा लगता है
~अजय “अग्यार