इश्क़ पूजा है हिमाक़त न शरारत कोई
इश्क़ पूजा है हिमाक़त न शरारत कोई
दिल की बातें हैं जहाँ से न बग़ावत कोई
कर भी देता है जहाँ इश्क़ को यूँ रुस्वा गर
इस ज़माने से शिकायत न अदावत कोई
जो हुआ वो ही मुक़द्दर में लिखा था मेरे
अपनी किस्मत से गिला है न शिकायत कोई
प्यार बचपन को जवाँ करता है दुनिया में सदा
इस चमन को है न नफ़रत की ज़रूरत कोई
आदमी हो के कोई फूल सभी प्यार से हैं
बिन मुहब्बत के फली है न नज़ारत कोई
दूर रहकर के मुहब्बत का शजर सूखा है
दरमियाँ फ़ासला है तो है न क़ुर्बत कोई
दूरियाँ ज़ह्’न पे दिल पर न असर करती हैं
राब्ता दिल से अगर है न मसाफ़त कोई
लाख कोशिश भी करो सच को छिपाने की मगर
‘सच में ताक़त है वो छिपती न हक़ीक़त कोई
जबकि ‘आनन्द’ जिया अपनी ही शर्तों पे सदा
इसलिये है भी नहीं उसको नदामत कोई
शब्दार्थ:- नज़ारत = ताज़गी, क़ुर्बत = नज़दीकी, मसाफ़त = दो स्थानों के बीच की दूरी, नदामत = पछतावा )
– डॉ आनन्द किशोर