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6 Apr 2019 · 1 min read

इश्क़ था शायद..

हाँ, कहना था तुमसे
पर कभी कह नहीं पाया
बाते बेहिसाब करता था खुद से
पर तुम्हे देख कर अक्सर
खामोश सा हो जाता था
मुझे कहना था बहुत कुछ तुमसे की
जब तुम अपने बाल खुले रखती हो
क्या कहूँ क्या गज़ब लगती थी
तुम्हारे वो झुमके
जो तुम पहन के निकलती थी
मुझे तो वो मंदिर की घंटियां जैसी लगती थी
तुम्हारे ओंठ के ऊपर जो
छोटा सा काला तिल है ना
उसे देखकर मैं ठहर सा जाता था
हाँ, नहीं हुआ था पहले कभी
पर जबसे तुम्हे देखा हूँ
मुझे होने लगा था
ये इश्क़ था शायद
वो भी एकतरफा
तुमसे पूछे बिना
तुमसे होने लगा था—अभिषेक राजहंस

Language: Hindi
461 Views
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