इश्क
इश्क तुझे अपने पर इतना इतवार क्यों,
कभी सोचा है, कितनों का दिल तोड़ तु,
खोया कहीं और था तु,
ना जाने कितने आशिकों अपने चंगुल में फंसा के,
तु लेता रहा मजा उसका,
इश्क तु तो बेदर्दी है यार,
आग दिल में भड़का के
फिर जलने के लिए अकेला छोड़ जाता,
इश्क क्यों इतराता है तु इतना,
अपने पे
आखिर क्या है तुझ में,
जो दुनिया भागती तेरे पिछे।