इश्क
आगाज से अन्जाम तक
बस एक तड़प और है क्या !
इश्क तो एक जज़्बा है
इसमें खोया क्या और पाया क्या !!
बैचेनी तो रहे पर
गमगीन ना हो यँहा !
सब पा ही लिया तूने
तो खोने का मजा क्या !!
मिलना ही मुहब्बत नहीं
इसमें है ना जाने क्या क्या !
जो इश्क जाहिर ना हुआ
वह इश्क नहीं है क्या !!
क्यो उम्मीद है तेरी
किसी से वफा की !
दिल मॆं इस जज्बे का उभरना
खुद अन्जाम नहीं है क्या !!