*इश्क यूँ ही रुलाता है*
इश्क यूँ ही रुलाता है
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इश्क यूँ ही रुलाता है,
जगत सारा हँसाता है।
कहीं कोई नहीं साथी,
अकेले पथ चलाता है।
तड़ित गिरती रहे मनवा,
अगन सीने लगाता हैं।
नहीं सुखचैन दिल कोई,
निशा सारी जगाता है।
सुनी हम ने बड़ी गाथें,
बहुत किस्से बनाता हैँ।
करो दो हाथ मनसीरत,
तड़फ बे-हद बढ़ाता हैँ।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)