इश्क भी बेरोजगारी में होता है साहब,नौकरी लगने के बाद तो रिश्
इश्क भी बेरोजगारी में होता है साहब,नौकरी लगने के बाद तो रिश्ते आते हैं।
सपनों का शहर और जेब खाली,रास्तों पे भटकते थे हम सवाली।
वो आँखों का इशारा, वो मीठी हँसी,छोटे ख्वाबों में भी बसी थी खुशी।।
रोटी का चक्कर था बड़ा भारी,इश्क में भी नसीब थी लाचारी।
कभी डिग्री की फाइल, कभी इंटरव्यू की कतार,वो प्यार के लिए था दिल बेकरार।।
वो कहती थी—”तुम बस कामयाब हो जाओ,””फिर रिश्ते वाले खुद दरवाज़े पे आएंगे।”
पर इश्क का जज़्बा न जाने क्यों,बेरोजगारी में भी दिल को बहलाएंगे।।
न नौकरी, न गाड़ी, न कोई ठिकाना,फिर भी मोहब्बत का जज़्बा था सुहाना।
वो चाय की दुकान, वो सस्ती किताबें,वो इश्क की बातें और टूटी सड़कों पे ठहराव।।
जब नौकरी लगी तो रिश्ते सज गए,सगे-संबंधी भी फिर से जग गए।
पर याद आती है वो बेरोजगारी की शाम,जब इश्क था सच्चा और सपने थे तमाम।।
इश्क भी बेरोजगारी में होता है साहब,नौकरी लगने के बाद तो रिश्ते आते हैं।।