इश्क पहली दफा
जब मिले तो वो मिले,सर झुका कर ही मिले।
तेहज़िबे हया थी चेहरे पर,मुस्कुरा कर ही मिले।
क्या उन्हे भी इश्क था भला, इन हसीं फिजाओं से,
हमसे मिले तो क्या खूब मिले,नज़रे चुराकर ही मिले।
बड़ी अदब थी चेहरे में,आफताब सा नूर था,
सर पे दुपट्टा ढांक कर, नज़रें चुराकर कर ही मिले।
क्यों न हो इश्क मुझे,सादगी उनकी देखकर,
पहली दफा ऐसे मिले, अपना बनाकर ही मिले।
बैचेन खुद भी हो गए,बेकरार मुझे भी कर गए
जरा जरा सा वो मिले तड़पा तड़पा कर ही मिले।
शायद उन्हें भी एहसास है मेरी मासूम मोहब्बत का,
उम्मीद है वो जब मिले,दिल को लगा कर ही मिले।
@साहित्य गौरव