इश्क तो कर लिया कर न पाया अटल
#गीतिका
आधार छंद – वाचिक स्रग्ग्विणी 212 212 212 212
वक्त चलता रहा सोचते रह गये।
बोल पाये नहीं बोलते रह गये।।(१)
वो गली से हमारी रहे थे गुजर,
रोक पाये नहीं देखते रह गये।(२)
बात उनकी हमें खूब अच्छी लगी,
ठीक है या गलत,तोलते रह गये।(३)
गांठ रिश्तों में’ ऐसी लगी आज है ,
खुल न पायी तनिक खोलते रह गये।(४)
राह मिलती नहीं हम भटकते फिरें,
जिंदगी ढल गई डोलते रह गये।(५)
मिल न पाया सुकूं आज तक भी हमें,
जिंदगी को सदा कोसते रह गये ।(६)
इश्क तो कर लिया कर न पाया अटल,
लोग उसकी दशा देखते रह गये।(७)