*इश्क के बाजार मैं*
इश्क के बाजार मैं
मेरे सब्र का इम्तहान न लो बहुत,,
सब्र कर चुके है तुम्हारे इंतजार मैं,,
कुछ भी हो जाये तो मत कसूर देना,,
मुझे तुम इस इश्क के खुले बाजार मैं,,
खुश है या रहने लगा है ये सवाल है,,
पर फायदे मे है इस दोस्ती के व्यापार मैं
कोई आया न आजतक इस दिल तक,,
पर आज खोलते दिल का दरबार मैं,,
वक़्त की बात है तुम्हारे हाथ पर जानो,
अंजू का दिल भी धड़के तो हू तैयार मैं,
रचना—-मानक लाल मनु