“इश्क का रंग”
कहते है, इश्क का रंग होता है लाल।
इश्कबाज ,इश्क में दिखते हैं सुर्ख लाल।
खतरे का रंग भी, होता है लाल।
इश्कबाज पर ही चढ़ता है ,खतरे का गुलाल।
इश्क उगते हुए सूरज की, लालिमा सा परवान चढ़ता है।
उसे खुद मालूम नहीं कब, सूरज की तरह आग बनता है।
फूलों की पंखुड़ियों सा कोमल, आग सा अंगार है इश्क।
अब वेदना ,वेदना नहीं रही, मल्हम बन गया है इश्क।
इश्क, इश्कियों को ,ऊर्जावान बनाता है।
किसी के लिए कुछ, कर गुजरने की हदें पार करवाता है।
इश्क की तुलना करें ,सूरज से जो बनाता है जीवन खुशहाल।
इश्क खुदा की इबादत है ,फिर क्यूं है ,इससे इतना मलाल।
इश्क इबादत है करके तो देखो, इसमें नहीं जाति का ख्याल।
फिर क्यूं! धर्मांबली धर्म की खातिर करते है, जीवन हलाल।