इश्क कहां संभलता हैं ।
ये ख्याल मुझे भी आता है की अब तुझे देखूं
और बस यहीं ठहर जाऊं,
राते राते करु बाते बातें करूं
मैं भी पागल होना चाहता हूं,
पर मैं सोच कर यही रुक जाता हूं
अकेले में मन तुझसे क्यों जा मिलता है
इन जिम्मेदारियों के आगे इश्क कहां संभलता हैं।
मैं तेरे आस पास रहना चाहता हूं
तेरे मोह में बंधना चाहता हूं
तेरे आगोश में खोना भी चाहता हूं
तुझे तूझसे ज्यादा चाहता हूं
पर मैं सोचकर रुक जाता हूं
की इन दर्द में किसका साथ मिलता है,
इन जिम्मेदारियों के आगे इश्क कहां संभलता है।
मैं भी ख्याल रखना चाहता हूं किसी का
किसी से दुलार भी चाहता हूं
मैं भी जन्मों का वादा करना चाहता हूं
किसी का विश्वास बनना चाहता हूं
चाहता हूं मेरी मुस्कान भी स्वाभाविक बने
और मैं सोच कर रुक जाता हूं
किसी के लिए जब ये दिल पत्थर बनता है
इन जिम्मेदारियों के आगे इश्क कहां संभलता है।
तुझपे आकर बस जिंदगी गुजार देना चाहता हूं
मुझे भी लम्हे बनाने है
बहुत बड़े बन चुके , बच्चो की तरह रहना चाहता हूं
मुझे भी तो एक अंतिम छोर का साथ चाहिए
पर सोच कर रुक जाता हूं
तुझे पाकर खो देना समझ आता हैं
बिना तुझे पाए खो दिया है
दिमाग को दिल का खेल सब समझ आता है
पर इन जिम्मेदारियों के आगे इश्क कहां संभलता है।
एक ख्वाहिश चाहता हूं
तुझे इजहार करना चाहता हूं
एक पल का वक्त काफी है
तुझसे वास्तविक प्यार करना चाहता हूं
समझाना चाहता हूं कितना अधूरा हूं
उस पल में तड़पना भी चाहता हूं
खुल के रोना भी चाहता हूं
क्योंकि मैं जानता हूं,
ऐसा तकदीर में नहीं होता है
इन जिम्मेदारियों के आगे इश्क कहां संभलता हैं ।