इश्क और वहम
मैं इस कदर तुम्हें चाहूंगा कि अनजाने में ही सही
तुम भी अनजान नही रह सकोगी ।
न चाहकर भी चाहोगी तो मुझे ही ।
तुमने दर्द दिया है तकलीफें तो तुम्हें भी होंगी ही ।
कराहूंगा मैं तो आंसू तुम्हारे भी गिरेंगे ही ।
नींद मुझे नही आएंगी तो बेचैनी तुम्हें भी होंगी ही ।
न चाहकर भी चाहोगी तो मुझे ही ।
मेरी आंखें तुम्हें ढूंढेगी , तुम्हारी आंखों में भी नमी होगी ही ।
अभी तुम्हें ढेर चाहने वाले मिल जायेंगे मगर
भीड़ में भी में याद तो हम आयेंगे ही ।
प्यार तो तुमने भी किया था तो
न चाहकर भी चाहोगी तो मुझे ही ।।
~विमल