इश्क – इश्क बोल कर
इश्क – इश्क बोल कर,
पकड़े रखा, जकड़ रखा,
तुझे हर पल थामे रखा,
इश्क इश्क बोल कर …
रंग-बिरंगे ख्वाब दिखाकर ,
खुद को बेरंग करता गया,
मन को घायल करता गया,
इश्क -इश्क बोल कर …
कहते हैं लोग……
ये इश्क नहीं आसन ;
दरिया में कूदकर,
इश्क को बचाने का ..
प्रयास करता गया,
इश्क – इश्क बोल कर ….
सोचता ना था..
ना ही सोचा जाता है ;
तू जो साथ ना है जिंदगी,
खुद को फ़ना करता रहा;
इश्क -इश्क बोल कर …
इश्क के दीपक को जलाए रखा,
नाराज़,तन्हा रह कर भी ,
तुझे माफ करता रहा,
इश्क में भी हो जाईए सबेरा,
तुझे हर पल थमा रखा,
इश्क -इश्क बोल कर ?
-गौतम साव