इश्क़ ही तो था ———— गजल/गीतिका
रिश्क तो बड़ी थी, इश्क में,
दिल फिर भी, फिक्स हो गया।
नजरों का उनकी, चला जादू,
दीवानगी में, उनकी खो गया।।
अब अंजाम की कौन सोचे भला,
दोनों ओर से चला सिलसिला।
“”इश्क़”” ही तो था ,होना था हो गया।।
फकत हम ही तो नहीं थे दीवाने इसके।
इन राहों का तो हर ,मुसाफिर खो गया।।
उड़ चले पंछी, मंजिल की तलाश थी।
मिली मंजिल उन्हें,लक्ष्य था जो पूरा हो गया।।
देखते है सपने सभी ,सफलता के जिंदगी में।
पा ली विजय मैंने, सपना साकार हो गया।।
राजेश व्यास अनुनय