” इश्क़ का मुश्क “
तेरी बेपनाह मोहब्बत ने, इश्क़ का मुश्क़ दे दिया,
हम तो मगरूर थे, तन्हाइयो में ही
तेरे रबायत ने दिल मे तशरीफ़ दे दी |
अब फ़लक जमी पर तेरी दस्तखत लगती है
दिल ए तम्मनाऐ ने विस्तार कर लिया है |
यू इस तरह तेरी मेरे दिल मे चहलकदमी
दिल के बगीचे को गुलाब कर देती है |
तुम मेरे बनो न बनो ,दरकार नहीं
तेरी मोहब्बत की झलक ने
मुझे तुम्हारा बना ही दिया है |
युक्ति वार्ष्णेय “सरला”
मुरादाबाद