इश्क़ इबादत
डॉ अरुण कुमार शास्त्री एक अबोध बालक अरुण अतृप्त
💐 इश्क़ इबादत 💐
एक अबोध बालक
इश्क है अगर मुझसे
तो उसका जिक्र
भी जरूरी है !
कि जैसे अल्लाह
की इबादत को
घुटनों पे आना
जरूरी है !
मैं नहीं चाह्ता के
तू बर्बाद हो जाये
मगर जब प्यास लगती है
तो महज इक बूंद पूरी है !
निकल घर से और
कर ये ऐलान दुनियाँ में
के सभी को
चाहना दिल से
हाय तेरी मजबूरी है ।
इश्क है अगर मुझसे
तो उसका जिक्र
भी जरूरी है ।
मुंतजिर हूँ मुंतज़िर था
और मुंतज़िर ही रहूँगा
तेरी इस वेवफ़ाई को
सामने दुनिया के लाना
भी अब यकीनन ज़रूरी है ।
तेरा वादा और बदलती रूत
कभी सर्दी कभी गर्मी
कभी बरसात का मौसम
भरोसा आये भी तो
तेरे इख़लाक़ का बता कैसे ।
कि अब इस उम्र का
ढल जाना भी
बेहद जाना ज़रूरी है ।
मैं टूटा तो नहीं लेकिन
मिरी सांसे अब संभाले कौन
जो मेरे खास थे
उनका हलफ़नामा अब
दुनियां को बतायेगा कौन
बड़ी मुश्किल से ख़त
लिखे मैंने तुझको बुलाने को
मग़र इस उम्र ढ़लती में
ये मिरे माशूक़ तक
पहुचायेगा कौन
इसीलिए फिर कहता है
ये अबोध बालक कि
इश्क है अगर मुझसे
तो उसका जिक्र
भी जरूरी है !
कि जैसे अल्लाह
की इबादत को
घुटनों पे आना
यकीनन जरूरी है !