इल्म
मैने यू ही नही जिन्दगी के 72 साल बर्बाद किए!
किसी को दिल से निकाला,कुछ को आबाद किए!!
परिन्दो को कब तलक कैद करके पिजंडे मे रखते?
जब तलक उनका दानापानी था,फिर आजाद किए!!
जिन्दगी की भागम भाग मे गिरे, फिर से खडे हुए!
पर मुस्कुराते रहे सदा जैसे भी हुए थे,हालात जिए!!
कई कमज़र्फ ताजिन्दगी खैचंते रहे हमेशा मेरी टाग,
हमने हालात से समझौता कर लिया, लानात दिए!!
जिन्दगी को हमने हँसने का इल्म भी सिखा दिया!
मुर्दा दिल क्या खाक जिए,समझाकर आबाद किए!!
बोधिसत्व कस्तूरिया एडवोकेट,कवि,पत्रकार
202 नीरव निकुजं फेस-2,सिकंदरा.आगरा,-282007
मो:9412443093