‘इल्म
ताउम्र भटकता रहा ख़ुदा की तलाश में ,
नासेह बहुत मिले खुद को पैग़ंबर कहने वाले,
कुछ तो ऐसे मिले खुद को ख़ुदा समझने वाले ,
नाख़ुदा ऐसे भी मिले इंसानियत समझने वाले ,
जिंदगी भर मैं ख़ुदा और ख़ुदी में उलझा रहा ,
मैं अहमक़ न जान सका के इंसानियत ही मे खुदा पैवस्त है ,
वो तो सच्चे इंसां के ज़मीरो ईमान और दिलो जाँ में रहता है ,
और इंसां की शक्ल में जलवागर हो करम- फ़रमा होता है ,