इल्तिज़ा है मेरी
इल्तिजा है ये तुझसे मेरी
ख्वाबों में न अब बात कर
रूबरू हो जा अब तूँ मेरे
आके मुझसे मुलाक़ात कर
याद आता है तूँ
तो सताता है तूँ
ख़्वाब में ही बस अपना
बताता है तूँ
आ जा तूँ रूबरू
और कभी भी न जा
मैं तुझे ही देखता रहूं रातभर
इल्तिजा है ये तुझसे मेरी
ख्वाबों में न अब बात कर
गीत पावन है जो मनभावन सा है
प्रीत का हर मौसम सावन सा है
सूखा सा पड़ गया है प्रीत के खेत में
सींचने के लिए थोड़ी बरसात कर
इल्तिजा है ये तुझसे मेरी
ख्वाबों में न अब बात कर
प्रेम के दरमयान दिल धड़कता रहा
तूँ रूबरू था मेरे दिल तड़पता रहा
मैं बहाना बना दूँ तो चल जाएगा
पर दिल चाहता है तेरा साथ भर
इल्तिजा है ये तुझसे मेरी
ख्वाबों में न अब बात कर
-सिद्धार्थ गोरखपुरी