इलज़ाम
वो कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती
हम नज़र भी उठाएँ तो इलज़ाम में फंसते हैं।
वो फूलों को मसल कर उजाड देते हैं चमन,
हम पौध भी लगाएं तो इलज़ाम में फंसते हैं।
वो सरे राह अटकाएं रोड़े भी ,खिताब पा जाते हैं
हम बनाएं नई रोहें भी ,तो इलज़ाम में फंसते हैं।
मापने लगते है हम जब कभी उनकी अपनी दूरियाँ,
जाल बुनने के लिए तब भी हम ही इलज़ाम में
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