इयार घरे नेवता
थाट बाट और केश सजा के,
दावत में एक सज्जन अइलें,
तीन नेवता के क्रम में इहवां,
दुसरा नेवता के लड्डू खइलें।
सबसे मिलके मान बड़वले,
शोभा बढवलें दुवारी के,
सब बड़का के चरन पे गिरने,
गोड़ भी लगले पुजारी के।
बिन खाये जाये के नइखे,
इयार हाथ जोड़ि कहले।
बड़ा स्नेह आतिथ्य में पाकर,
नेवतहरू गदगद रहले।
हम देखनी तेजी में पवलीं,
उ समईयाँ बार बार देखें।
इयार के घरे आइल रहलन,
साड़ी पैसा नेवता लेके।
सोचले जल्दी खाना खालीं,
जाएके तीसरो नेवता बा।
लोग पे लोग चढ़ल लउकल,
जहां कुर्सी मेज व्यवस्था बा।
जब सोचे अब हम बइठब,
कुर्सी केहु अउर खींच लेला।
तारा ऊपरी पोता पाती,
उ घबरालें देखि ठेलमठेला।
लमहर इंतजार के बाद ,
एक जगह मिलल खाली।
देर त होते ही रहल,
सोचले जल्दी आवे थाली।
तब्बे इयार के बहिन अइली,
पी.एच.डी.कइले रहली।
कहली प्लीज लीव द सीट,
दूसरे के बैठावल चहली।
कहली ये सब मेहमान हैं,
पहले इनको खाने दें।
मेरी बात का बुरा न माने,
अपनी कुर्सी पर आने दें।
सज्जो लोगवा हमके देखे,
मुड़िया लाजे से झुकि गईल।
अइसन पी.एच.डी. दीदी पाके,
आवत हिचकी भी रुकि गईल।
कहले अशोक उ समय रहल,
जब हाथ पकड़ बइठावल जा।
स्नेह रस में बोरि बोरि,
पारा पारी खियावल जा।
खाये बैठल कुकुरों के भी,
केहू ना मार भगावेला।
त पढ़ल लिखल लोगवा कइसे,
अइसन गलती दोहरावेला।