इबादत में तेरी …
इबादत में तेरी भला क्या करें
हमें कुछ नहीं है पता क्या करें ..
सना हम करें चाहे शिकवा करें
तेरे इश्क मॆ या खुदा क्या करें …
ये दौलत, ये शोहरत, यॆ दस्तार सब
अगर तू नहीं तो हटा क्या करें ..
इसी से मिले है जिगर को सुकूँ
तो फिर दर्दे दिल की दवा क्या करें ..
है समझा जिसे जिन्दगी जीत ने
वही हैं खफ़ा अब भला क्या करें ..
©✍ जितेन्द्र “जीत”