इन हसरतों से कह दो ,…
इन हसरतों से कह दो की न मचलें बेवज़ह ,
मैने इन्हें अक्सर दिलों में टूटते हुए देखा है।
बुझते देखें हैं ख़्वाब चश्म-ओ-चिराग के जैसे,
हर एक अक्स धुएं में बदलते हुए देखा है।
मुझे नहीं मालूम की क्या होती है ख़ुशी
तबसुम को अपने अश्क़ों में बदलते देखा है।
मेरा दिल ना हासिल कर सका जरा सा सुकून ,
ज़हन में तूफान उठाते कशमकशों को देखा है।
बहारों का आगाज़ भी हुआ था सामने अंजाम ,
मैने क़िस्मत को दरवाज़े बंद करते हुए देखा है।
मेरी आरजुएं मिन्नतें कर के खुदा से हार गयीं ,
मैने ज़िंदगी तन्हाईओं में सिसकते हुए देखा है।
मैं रिश्तों की डोर मजबूती से ना थाम सकी ,
मैने दोस्ती औ प्यार को नफरत में बदलते देखा है।
यह उलझी हुई सर्द आहों औ सांसों पर पहरा !
रूह को आज़ादी के लिए तड़पते हुए देखा है।