इन सर्द रास्तों पर
इन सर्द रास्तों पर
कहीं ठहरा हुआ हूँ मैं
एक खौफनाक अंधेरा है
पूरी शिद्दत से गिरफ्त में लिए मुझे
रिमझिम बरसती बूंदे जिस्म से फिसलते हुए
बहा ले जा रही है
मेरे भीतर का कतरा कतरा दुख
हथेलियों में समेट रहा हूँ
बारिशें पर ये टिकती नहीं
सर्द हवाएँ अंदर तक
कुरेद रही है मुझे
मैं बस ख़ामोश हूँ… इतना खामोश
अपने अंदर के शोर को
साफ साफ सुन पा रहा हूँ मैं …
मैं तय कर लेना चाहता हूँ ये सफर
मिटाना चाहता हूँ
जिंदगी की पगडंडियों से
गुजरती तुम्हारी यादें
भूलना चाहता हूॅं
तुम्हारी खनकती हँसी
खुद को…
यक़ीन दिलाना चाहता हूॅं
तुम नहीं हो अब ….
तुम नहीं हो ….नहीं हो तुम
इन भीगी हुई हथेलियों के बीच
गुनगुनी छुअन बन कर
सुनसान सड़क पर
रफ्तार से गुजरते शोर के दरमियाँ
मेरे साथ नहीं हो तुम
मेरी अँगुलियों से फिसलती बूंद सी तुम.
हिमांशु Kulshrestha