इन्सान की क्या कीमत
इन्सान की कीमत का क्या मोल यहाँ,
भगवान खरीदे जाते है ।
अभिमान भरी इस दुनिया मे रिस्ते ठोकर खाते है ।।
पल पल बिगड़ते रिस्तो की हालत ऐसी माली है
गर्व जनित व्यक्तित्व के आगे रिस्ते भरते पानी है ।
परिवार जो बनता रिस्तो से अब ईंट पत्थर का मुकाम बना,
हम देख सकते है उस क्षितिज को जहाँ से हर रिस्ता लगता एक जुआ।।
रिस्ते आज पतन पर है, इंसानियत दम तोड़ रही,
जाने क्यू सबको लगता है वो ही है,एक मात्र सही।।अपशब्दो की सीमा आज अपनी हद पार करती है,
अविश्वास और वहम के आगे मर्यादाएं रोज ही मरती है ।
रिस्तो की मर्यादाए ,अब प्राप्ती की मोहताज़ बनी,
स्नेह,समर्पण और ममता अब शब्द कोश की शान बनी